इसहफ्ते न्यूज. चंडीगढ़
इस गली का मूल स्वरूप करीब 61 साल पहले ही बदल दिया गया था। अब तो केवल बदले हुए स्वरूप को नया रूप दिया गया है। देश की आजादी के बाद जलियांवाला बाग ट्रस्ट की ओर से 1957 में पहली बार रेनोवेशन का काम शुरू किया गया था। इतिहास व जलियांवाला बाग की जानकारी रखने वालों के अनुसार 1960 में जब रेनोवेशन का काम पूरा हुआ तो बाग की प्रवेश गली का मूल स्वरूप बदल चुका था।
जलियांवाला बाग के नवीनीकरण के बाद देश में इसकी बहस छिड़ गई है कि इस विरासत के मूल स्वरूप से छेड़छाड़ करना कितना सही है। बीते माह 28 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जलियांवाला बाग के नवीनीकरण का वुर्चअल उद्घाटन तो कर दिया लेकिन कांग्रेस नेता राहुल गांधी के ट्वीट ने विवाद को हवा दे दी। उन्होंने तो नवीनीकरण को शहीदों का अपमान भी करार दे दिया। बेशक, विपक्ष में होने की वजह से राहुल गांधी का केंद्र सरकार के हर कार्य की आलोचना करने का अधिकार सुरक्षित है, लेकिन इस बार उनकी ओर से उठाए गए मुद्दे पर सही में बहस जरूरी है। वर्षों पहले किसी इमारत का मूल ढांचा अगर आज की तारीख में बदल दिया जाए तो यह अपनी मौलिकता खो देगा। जलियांवाला बाग को लेकर इस समय यही बात सामने आ रही है। राहुल गांधी जिस छेड़छाड़ की बात कर रहे हैं, वह जलियांवाला बाग में बनी गली और कुएं को लेकर है।
नानकशाही ईंटों की जगह पर हुआ पलस्तर
नवीनीकरण से पहले इस गली में नानकशाही ईंटें लगी हुई थी, लेकिन अब इस गली की दीवारों पर सीमेंट प्लस्तर करके यहां लोगों के बुत लगा दिए गए हैं। देखने में अब यह गली आकर्षक नजर आती है और आजादी के आंदोलन के दौरान निकलने वाले मार्च की याद दिलाती है, लेकिन इसके साथ ही इसकी मौलिकता यानी नानकशाही ईंटों की वह दीवार गायब हो गई है, जोकि इसकी प्राचीनता का सबूत होती थी। मामला तब और भडक़ा है, जब ब्रिटिश इतिहासकार किम वैगनर ने इस पर ऐतराज जताया। उनके मुताबिक बाग के नवीनीकरण से नरसंहार की अंतिम निशानी मिटा दी गई है। विभिन्न बौद्धिक तबकों ने भी नवीनीकरण पर सवाल उठाए हैं। हालांकि दिलचस्प यह है कि पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को इस तब्दीली में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं लगा। उन्होंने तो राहुल गांधी की आपत्ति को दरकिनार करते हुए कहा- मुझे तो यह देखने में अच्छा लगा।
राजनीतिक तो नहीं छेड़छाड़ का आरोप
क्या नवीनीकरण पर राहुल गांधी की ओर से सवाल उठाना राजनीतिक वजह से तो नहीं है, क्योंकि अगस्त 2019 में जब जलियांवाला बाग नेशनल मेमोरियल ट्रस्ट से कांग्रेस अध्यक्ष को स्थायी सदस्य के पद से हटा दिया गया था तो कांग्रेस ने इसे मुद्दा बना लिया था। उस समय लोकसभा में 2 अगस्त को इस संबंध में विधेयक पेश किया गया था तो कांग्रेस और सत्ता पक्ष के सांसदों के बीच तीखी नोक-झोंक हुई थी। हालांकि कांग्रेस सांसदों के वॉकआउट के बीच यह विधेयक लोकसभा से पारित हो गया था। विधेयक पेश करते समय संस्कृति मंत्री प्रह्लाद पटेल ने कहा था कि सरकार जलियांवाला बाग नेशनल मेमोरियल से जुड़ी राजनीति को समाप्त करना चाह रही है। गौरतलब है कि वर्ष 1951 में इस संबंध में एक्ट बनाया गया था, बाद में इसमें संशोधन वाला विधेयक पेश किया गया। इस पर शुरू से ही सवाल उठ रहे थे कि आखिर कांग्रेस के अध्यक्ष को मेमोरियल ट्रस्ट का स्थाई सदस्य क्यों बनाया गया है। जलियांवाला बाग मेमोरियल अविभाजित भारत के साथ घटी एक वारदात थी, बाद में यह भारत के लिए ऐसी धरोहर बन गई, जिसको कायम रखा जाना बेहद जरूरी है।
शहादत की कीमत न वसूलें राहुल
अब राहुल गांधी ने जिस भावुक अंदाज में इस मामले को उठाया है, वह इसे राष्ट्रीय अस्मिता से जोडऩे का प्रयास नजर आ रहा है। दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अपने प्राणों की आहुति दी थी, अब राहुल गांधी अगर यह कह रहे हैं कि वे शहीद के बेटे हैं तो उनका मकसद साफ-साफ यह कहना है कि उनके परिवार ने देश के लिए शहादत दी है, इसलिए शहादत का मर्म और पीड़ा वही बता सकते हैं। उनकी दादी इंदिरा गांधी ने भी पंजाब में आतंकवाद को खत्म करने का मोल अपना जीवन कुर्बान करके अदा किया था। भाजपा के राष्ट्रवाद के खिलाफ कांग्रेस अपने नेताओं की शहादत को पेश कर राष्ट्रीय सहानुभूति जुटाने की कोशिश करती रही है और अब जलियांवाला बाग के माध्यम से फिर इसका प्रयास किया जा रहा है। यही वजह है कि राहुल गांधी ने भाजपा सरकार पर तंज कसा है कि जिन्होंने आजादी की लड़ाई नहीं लड़ी, वे उन लोगों को नहीं समझ सकते, जिन्होंने आजादी की लड़ाई लड़ी। बेशक, राहुल गांधी अपने परिवार के लोगों की शहादत का जिक्र कर सकते हैं, लेकिन शहादत की कीमत वसूलना उचित नहीं है। अंग्रेजों की गुलामी के समय भी यह देश सभी का था और आजादी के बाद भी सभी का है। इस समय कांग्रेस अगर सत्ता में नहीं है तो इसका अभिप्राय यह नहीं हो सकता कि देश कांग्रेस नेताओं की शहादत को याद नहीं रख रहा है।
इतिहासकार और शहीदों के परिजन भी उठा रहे सवाल
वैसे, शहीदों के परिजनों एवं इतिहासकारों ने भी बदलाव पर सवाल खड़े किए हैं। मीडिया रिपोट्र्स के अनुसार जीएनडीयू के इतिहास विभाग के पूर्व मुखी डॉ. हरीश शर्मा ने जलियांवाला बाग में कुएं और गली में तब्दीली पर आपत्ति जताई है। उनके मुताबिक संरक्षण होना चाहिए लेकिन मूल स्थिति से छेड़छाड़ बिल्कुल नहीं होनी चाहिए। हालांकि दूसरी ओर जलियांवाला बाग शहीद परिवार समिति के प्रधान महेश बहल का कहना है कि उन्हें किसी और काम पर ऐतराज नहीं है, लेकिन प्रवेश और निकासी के नवीनीकरण पर आपत्ति है। इसी तरह जलियांवाला बाग फ्रीडम फाइटर फांउडेशन के प्रधान सुनील कपूर की राय है कि बाग के मूल स्वरूप को प्रभावित करने वाली हर बात पर उन्हें आपत्ति है। यह उसकी मौलिकता को खत्म करता है।
मूल स्वरूप तो 61 साल पहले ही बदल दिया गया था
बेशक, इस समय जलियांवाला बाग के नवीनीकरण पर सवाल उठ रहे हैं, लेकिन हिंदी दैनिक जागरण की रिपोर्ट के मुताबिक इस गली का मूल स्वरूप करीब 61 साल पहले ही बदल दिया गया था। अब तो केवल बदले हुए स्वरूप को नया रूप दिया गया है। देश की आजादी के बाद जलियांवाला बाग ट्रस्ट की ओर से 1957 में पहली बार रेनोवेशन का काम शुरू किया गया था। इतिहास व जलियांवाला बाग की जानकारी रखने वालों के अनुसार 1960 में जब रेनोवेशन का काम पूरा हुआ तो बाग की प्रवेश गली का मूल स्वरूप बदल चुका था। इसके बाद जलियांवाला बाग जाने वाले लोग लगातार उस बदले हुए स्वरूप को देखते आए हैं। जानकारों के अनुसार जिन लोगों ने प्रवेश गली का मौजूदा स्वरूप 1960 के बाद देखा है उन्हें यही लगता है कि यह प्रवेश गली 1919 नरसंहार के समय भी ऐसी ही थी, जबकि ऐसा नहीं है।
भाजपा के राज्यसभा सदस्य और जलियांवाला बाग नेशनल मेमोरियल ट्रस्ट के ट्रस्टी श्वेत मलिक ने कहा कि केंद्र सरकार की ओर से करवाए गए नवीनीकरण के दौरान कोई ऐतिहासिक महत्व से छेड़छाड़ या बदलाव नहीं किया गया है। अगर किसी के पास इसका कोई साक्ष्य है तो उसे सामने लाना चाहिए। वहीं पूर्व सैन्य अधिकारी, पर्यावरणविद और लेखक पीएस भट्टी का कहना है कि वह 1944 में बाग में गए थे तो वहां पर कुछ भी नहीं था। केवल चूने व ईंट की दीवारें थीं और शहीदी कुआं था। आजादी के बाद बाग की बागडोर संभालने वाली कांग्रेस ने 1957 में इसकी रेनोवेशन का काम शुरू करवाया, जो 1960 तक चला। 1961 में तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने इसका उद्घाटन किया।
20 करोड़ की आई लागत
जलियांवाला नरसंहार के 100 साल पूरे होने पर बाग के संरक्षण और नवीनीकरण के लिए केंद्र सरकार ने 20 करोड़ रुपये की परियोजना को नेशनल इंप्लीमेंटेशन कमेटी ने जून 2019 में मंजूरी दी थी। इस सलाहकार कमेटी में आर्कियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया और नेशनल बिल्डिंग्स कंट्रक्शन कारपोरेशन लिमिटेड के अलावा संस्कृति और पर्यटन मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे, जिन्होंने एक टेंडर जारी किया और परियोजना पर काम करने का जिम्मा अहमदाबाद की वामा कम्युनिकेशंस को दिया गया।